जानिए धारा 368 के बारे में: आत्महत्या के प्रयास से जुड़े कानूनी पहलू

📅 Nov 19, 2025
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📂 भारतीय कानून
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जानिए धारा 368 के बारे में: आत्महत्या के प्रयास से जुड़े कानूनी पहलू

धारा 368 का परिचय और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 368 एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है जो आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी में रखता है। इस धारा का मूल उद्देश्य जीवन के महत्व को रेखांकित करना और व्यक्तियों को आत्मघाती कदम उठाने से रोकना है। भारतीय कानून व्यवस्था में जीवन को पवित्र माना जाता है और कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को समाप्त करने का प्रयास करे, इसे गंभीर अपराध माना जाता है।

धारा 368 की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ब्रिटिश काल से जुड़ी हुई है। जब भारतीय दंड संहिता 1860 में लागू की गई थी, तब आत्महत्या के प्रयास को अपराध मानने की अवधारणा ब्रिटिश कानून से प्रभावित थी। उस समय का सामाजिक दृष्टिकोण यह था कि आत्महत्या का प्रयास न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए हानिकारक है। हालांकि, समय के साथ मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण इस धारा पर पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस की जाने लगी।

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धारा 368 का मूल पाठ:
"जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा, वह किसी एक अवधि के लिए कारावास से, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, दंडित किया जाएगा, या जुर्माने से, या दोनों से।"

धारा 368 के प्रमुख प्रावधान और दंड

धारा 368 के अंतर्गत आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को कानूनी दंड का प्रावधान है। इस धारा में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करता है, तो उसे दस वर्ष तक की कैद की सजा हो सकती है, या जुर्माना लगाया जा सकता है, या दोनों सजाएं एक साथ दी जा सकती हैं। यह दंड इसलिए रखा गया है ताकि लोगों को आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने से रोका जा सके।

इस धारा के क्रियान्वयन में कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। पहली बात यह है कि आत्महत्या का प्रयास साबित करने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति ने वास्तव में आत्महत्या करने का इरादा रखा हो और उसने इस दिशा में कोई ठोस कार्य किया हो। केवल मन में आत्महत्या के विचार आना अपराध नहीं माना जाता। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि आत्महत्या का प्रयास करने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है, तो न्यायालय मामले को अलग ढंग से देख सकता है।

धारा 368 और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम में संबंध

हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 लागू होने के बाद आत्महत्या के प्रयास को अपराध मानने की धारणा पर पुनर्विचार शुरू हुआ है। इस नए अधिनियम के अनुसार, आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को अपराधी की बजाय मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए।

इस परिवर्तन के पीछे मुख्य तर्क यह है कि आत्महत्या का प्रयास आमतौर पर गहन मानसिक पीड़ा, अवसाद, या अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का परिणाम होता है। ऐसे में व्यक्ति को दंड देने के बजाय उचित चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना अधिक उपयुक्त होता है। हालांकि, अभी भी धारा 368 IPC में मौजूद है और इसका पालन किया जाता है, लेकिन न्यायालय अब मामलों को देखते समय मानसिक स्वास्थ्य के पहलू को महत्व देते हैं।

समाज पर धारा 368 का प्रभाव और वर्तमान स्थिति

धारा 368 का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। एक ओर यह धारा लोगों को आत्महत्या के प्रयास से रोकने में सहायक रही है, वहीं दूसरी ओर इसकी आलोचना भी होती रही है। आलोचकों का मानना है कि जो व्यक्ति इतनी गहन मानसिक पीड़ा से गुजर रहा है कि वह आत्महत्या का प्रयास करता है, उसे दंडित करना नैतिक रूप से उचित नहीं है।

वर्तमान में भारत सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठन आत्महत्या रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में शिक्षित करना और आत्महत्या के विचार आने पर तुरंत मदद लेने के लिए प्रोत्साहित करना है। कई राज्यों में मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन सेवाएं शुरू की गई हैं जहां संकट में फंसे लोग मदद प्राप्त कर सकते हैं।

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महत्वपूर्ण संपर्क जानकारी:
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन: 1800-599-0019
क्राइसिस हेल्पलाइन: 022-27546669

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

धारा 368 के तहत क्या सजा हो सकती है?

धारा 368 के अंतर्गत आत्महत्या का प्रयास करने पर दस वर्ष तक की कैद की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। हालांकि, न्यायालय मामले की परिस्थितियों और व्यक्ति की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेता है।

क्या आत्महत्या का प्रयास हमेशा अपराध माना जाता है?

वर्तमान कानूनी परिप्रेक्ष्य में आत्महत्या के प्रयास को अपराध माना जाता है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के बाद इसे मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है। न्यायालय अब ऐसे मामलों में दंड के बजाय उपचार पर जोर देते हैं।

धारा 368 में क्या बदलाव की आवश्यकता है?

कई विशेषज्ञों और मानसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मानना है कि धारा 368 को समाप्त करना चाहिए या संशोधित करना चाहिए ताकि आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्तियों को दंड के बजाय चिकित्सकीय सहायता मिल सके।

आत्महत्या के विचार आने पर क्या करें?

यदि किसी व्यक्ति के मन में आत्महत्या के विचार आते हैं, तो उसे तुरंत मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन (1800-599-0019) पर भी मदद उपलब्ध है। परिवार के सदस्यों या विश्वसनीय मित्रों से बातचीत करना भी महत्वपूर्ण है।